नई दिल्ली, 26 दिसंबर || परिभाषा बदलने से लेकर GLP-1 दवाओं के बढ़ने और सरकार की कई पहलों, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के कारण, 2025 में भारत में मोटापा हेल्थकेयर का मुख्य फोकस बन गया।
मोटापा विरोधी अभियान, खासकर जेनेरिक दवाएं, 2026 में भी मुख्य फोकस बनी रहेंगी।
परंपरागत रूप से, मोटापे को परिभाषित करने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (BMI) का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन 15 लंबे सालों के बाद, भारत ने 2025 में मोटापे के लिए अपनी गाइडलाइंस को बदला और मोटापे की सीमा को घटाकर 25 kg/m² कर दिया (जो अंतरराष्ट्रीय 30 kg/m² से कम है), जिसमें "ओवरवेट" को 23.0 और 24.9 kg/m² के बीच परिभाषित किया गया है।
नया तरीका सिर्फ BMI पर नहीं, बल्कि पेट के मोटापे और उससे जुड़ी बीमारियों पर केंद्रित था। इसके साथ ही, क्लिनिकल फोकस BMI से हटकर कमर की माप और कमर-से-ऊंचाई के अनुपात (W-HtR) पर चला गया ताकि पेट की चर्बी को बेहतर ढंग से पहचाना जा सके, जो "पतले-मोटे भारतीय" फेनोटाइप में ज़्यादा आम है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2019–21) के अनुसार, लगभग एक चौथाई भारतीय महिलाएं और पुरुष ओवरवेट या मोटे हैं। बचपन के मोटापे में भी बढ़ोतरी हो रही है, जिसमें लगभग 5 प्रतिशत स्कूली बच्चे मोटे हैं।