नई दिल्ली, 27 दिसंबर || एक स्टडी के अनुसार, ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग के लिए एक पर्सनलाइज़्ड तरीका, जो सालाना मैमोग्राम के बजाय मरीज़ों के रिस्क का आकलन करता है, ज़्यादा गंभीर कैंसर की संभावना को कम कर सकता है, साथ ही लोगों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से सुरक्षित रूप से स्क्रीनिंग भी मिल सकती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, सैन फ़्रांसिस्को (UCSF) की यह स्टडी 46,000 अमेरिकी महिलाओं पर आधारित है। इसके नतीजों से पता चलता है कि स्क्रीनिंग के तरीके को सिर्फ़ उम्र पर आधारित होने के बजाय, एक ऐसे तरीके में बदलना चाहिए जो हर महिला के लिए सबसे सही स्क्रीनिंग शेड्यूल तय करने के लिए व्यापक रिस्क असेसमेंट से शुरू हो।
UCSF ब्रेस्ट केयर सेंटर की डायरेक्टर लौरा जे. एसरमैन ने कहा, "ये नतीजे ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग के लिए क्लिनिकल गाइडलाइंस को बदल देंगे और क्लिनिकल प्रैक्टिस में भी बदलाव लाएंगे।"
एसरमैन ने आगे कहा, "पर्सनलाइज़्ड तरीका रिस्क असेसमेंट से शुरू होता है, जिसमें जेनेटिक, बायोलॉजिकल और लाइफ़स्टाइल कारकों को शामिल किया जाता है, जो प्रभावी रोकथाम की रणनीतियों में मदद कर सकते हैं।"