कोलकाता, 1 अगस्त || पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा भाजपा शासित राज्यों से लौट रहे बंगाली प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार देने के वादे ने राज्य प्रशासन को मुश्किल में डाल दिया है।
राज्य सचिवालय के सूत्रों का मानना है कि अगर मुख्यमंत्री के आह्वान पर बंगाली प्रवासी मज़दूर बड़ी संख्या में राज्य लौटने लगे, तो उनके रोज़गार और रोज़गार आश्वासन को लागू करने में कई बाधाएँ आ सकती हैं।
पहली बाधा पश्चिम बंगाल से आने वाले प्रवासी मज़दूरों की सही संख्या और उनके राज्यवार वितरण के बारे में कोई प्रामाणिक डेटाबेस उपलब्ध न होना है।
राज्य योजना, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम निगरानी विभाग के एक अधिकारी ने, जिन्होंने नाम न बताने की शर्त पर बताया, "दूसरी बात, इस बात का कोई प्रामाणिक आँकड़ा उपलब्ध नहीं है कि इनमें से कितने अस्थायी श्रमिक हैं और कितने स्थायी प्रवासी श्रमिक हैं। पश्चिम बंगाल के कुशल और अकुशल प्रवासी श्रमिकों की संख्या का अलग-अलग आँकड़ा भी उपलब्ध नहीं है। साथ ही, पश्चिम बंगाल के इन प्रवासी श्रमिकों के क्षेत्रवार वितरण का कोई अनुमान, यहाँ तक कि अनुमानित भी नहीं है।"
अस्थायी श्रमिक वे होते हैं जो वर्ष के अधिकांश समय पश्चिम बंगाल में अपने मूल स्थानों पर रहते हैं और जीविकोपार्जन के लिए समय-समय पर एक निश्चित अवधि के लिए दूसरे राज्यों में चले जाते हैं।