नई दिल्ली, 29 जुलाई || एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि आपके पसंदीदा चिप्स, कुकीज़, सोडा - अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ - व्यसनकारी व्यवहार को जन्म दे सकते हैं जो मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकारों के निदान के लिए उपयोग किए जाने वाले समान नैदानिक मानदंडों को पूरा करते हैं।
शोधकर्ताओं ने तर्क दिया कि निदान प्रणालियों में इसकी पहचान न करना एक खतरनाक चूक है जिसके वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की प्रोफेसर और प्रमुख लेखिका एशले गियरहार्ट ने कहा, "लोग सेब या भूरे चावल के आदी नहीं हो रहे हैं।"
गियरहार्ट ने आगे कहा, "वे ऐसे औद्योगिक उत्पादों से जूझ रहे हैं जिन्हें विशेष रूप से मस्तिष्क पर दवा की तरह - तेज़ी से, तीव्रता से और बार-बार - असर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।"
नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित इस शोधपत्र में 36 देशों में हुए लगभग 300 अध्ययनों के साक्ष्यों का संश्लेषण किया गया है। उनके निष्कर्षों से पता चला है कि अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ मस्तिष्क की पुरस्कार प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे लालसा, नियंत्रण की कमी और हानिकारक परिणामों के बावजूद लगातार सेवन - व्यसन की प्रमुख विशेषताएं - बढ़ सकती हैं।
इसके अलावा, न्यूरोइमेजिंग अध्ययनों से पता चलता है कि इन खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन करने वाले व्यक्तियों में मस्तिष्क परिपथ में व्यवधान शराब और कोकीन की लत के समान ही दिखाई देते हैं।
विशेष रूप से, अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की लालसा को कम करने वाली दवाएँ भी नशीली दवाओं के बाध्यकारी उपयोग को कम करने में सहायक पाई गई हैं, जो साझा तंत्रिका-जैविक तंत्रों को रेखांकित करता है।